वाराणसी। धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में मोक्ष के साथ ही साथ पितरों के पिंडदान का भी विशेष महत्व है। पितृपक्ष तीर्थ गया से तर्पण कर श्रद्धालु काशी में त्रिपिंडी श्राद्ध के लिए आते हैं। गुरुवार को पितृपक्ष के अंतिम दिन सदा नीरा के तट पर श्रद्धालुओं का रेला देखा गया। सभी अपने पूर्वजों का तर्पण करते देकगे गए। श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों का पिंडदान किया।सर्व पितृ विसर्जन की महातिथि के अवसर पर काशी के घाट कोरोना काल में भी गुलज़ार दिखे। सभी घाटों पर श्रद्धालु पितरों के लिए पिंडदान करते नज़र आये। ऐसा मानना है की काशी में त्रिपिंडी श्राद्धकर्म और तर्पण के बाद पितरों की अतृप्त आत्माओं का इस लोक से गमन हो जाता है। अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या की शुभ तिथि में सर्व पितृ विसर्जन किया जाता है। गुरुवार को पड़ी इस महातिथि पर सुबह से ही काशी के घाट कोरोना काल में भी गुलज़ार दिखे। शहर के प्रसिद्द दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, प्रयाग घाट, केदार घाट, तुलसी घाट, पंचगंगा घाट, अस्सी घाट, चौकी घाट, पांडेय घाट और रविदास घाट के साथ साथ भैंसासुर घाट पर अपने पितरों का पिंडदान करने वालों का जमावड़ा लगा था। सभी ने विधि विधान से घाट पुरोहितों की देख रेख में पिंडदान किया।