वाराणसी।भारत सरकार के सहयोग से स्थापित, नेशनल फैसिलिटी फॉर ट्राईबल एंड हर्बल मेडिसिन सेंटर, जो कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में, पिछले 12 वर्षों से अनवरत सेवा कर रहा है, उसके आधार मे यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन, की अति वरिष्ठ केंद्र की भूमिका रही है.
90 के दशक में स्थापित, सेंटर ऑफ साइकोसोमेटिक एंड बायोफीडबैक मेडिसिन जब 2007 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अनावश्यक रूप से संघर्ष कर रहा था तब, केंद्र को और मजबूत करने के उद्देश्य से, भारत सरकार ने नेशनल फैसिलिटी फॉर ट्राईबल एंड हर्बल मेडिसिन की स्थापना, सन 2008 में ही कर दी.
वर्तमान समय में, उपरोक्त केंद्र को, समायोजित करने के लिए, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन को 2012 से ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा निवेदन पत्र भेजा जा रहा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निवेदन के पश्चात, केंद्र की क्षमताओं को ध्यान में रखकर सन 2013 मैं यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने केंद्र अपनी संस्तुति प्रदान कर दी. इस नेशनल फैसिलिटी केंद्र को कार्य करते हुए 12 वर्ष पूरे हो चुके हैं, परंतु इसके कर्मचारियों को, अभी भी समायोजित हो जाने की दरकार बनी हुई है.
विश्वविद्यालय में स्थापित इसके बाद में आए केंद्र, अपने को समायोजित कराने में सफल हो पाए परंतु 1 दर्जन से अधिक पेटेंट रखने वाले प्रोफेसर जी पी दुबे के इस केंद्र के कर्मचारी अभी भी उनके आश्वासन और निर्देशन के अनुरूप कार्य कर रहे हैं, तथा यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं. विश्व विद्यालय की सर्वोच्च इकाई Academic और EC काउंसिल ने 2013, 2014 में ही केंद्र को पूर्व केंद्र में समायोजित करने के लिए अपनी सहमति देकर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को, निवेदन कर रखा है.
केंद्र की करोड़ों रुपए की मशीनें, और मेटाबोलिक वार्ड, सर सुंदरलाल हॉस्पिटल में, अपनी सुरक्षा और व्यवस्था के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की राह भी देख रहे हैं.
क्लिनिकल ट्रायल के क्षेत्र में, कतिपय बहुत कम सेंटर ऐसे होंगे, जो इस तरह के वैश्विक पेटेंटेड कार्यों को इतने लंबे समय तक चला रहे हैं.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को, अभी भेजी गई रिपोर्ट में, इन सभी बातों का भी उल्लेख किया गया है.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर प्रोफेसर जी पी दुबे से, जब हमारे संवाददाता ने चर्चा की तब, उन्होंने बहुत जोर देकर इस बात को व्यक्त किए की अब इस केंद्र के कर्मचारियों को समायोजित करने के लिए मैं कुलपति से सीधी बात करूंगा.
केंद्र में कार्य कर रहे वैज्ञानिक डॉक्टर सत्य प्रकाश, अपनी रुचि से इस 6 महीने की लॉक डाउन में समाज की शिक्षा व्यवस्था के लिए, छोटे बच्चों को नव वैज्ञानिक पद्धति से, शिक्षा अभिरुचि बढ़ाने के लिए, फेसबुक को रियल बुक बनाने के लिए जाने जाते हैं. पिछले 12 वर्षों के, वैज्ञानिक पद पर कार्य करते हुए, डा० सत्य प्रकाश से जब इस केंद्र के विषय में चर्चा की गई तब, उन्होंने बहुत स्पष्ट तरीके से बताया, कि जब जब विश्वविद्यालय को आवश्यकता पड़ी है, केंद्र ने अपना बहुमूल्य रिसर्च, विश्वविद्यालय के पटल पर रखा है.
वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, और क्लिनिकल ट्रायल के महत्व को समझते हुए, उन्हें आशा है कि, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अब इस केंद्र को अपनी पूरी सहमति देकर केंद्र के कर्मचारियों को समायोजित करने के लिए अपना उत्तरदायित्व निभाएगा. ज्ञात हो कि 90 के दशक से चल रहे इस केंद्र को विश्वविद्यालय में स्थापित करने और पिछले 7 वर्षों से चलाने में, विद्यालय अनुदान आयोग की ही भूमिका है